भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का रहस्य: पुरी धाम, जगन्नाथ जी का निवास स्थान, एक ऐसा स्थल है जो अपनी धार्मिक महत्ता और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित Bhagwan Jagannath की मूर्ति, जो अपनी अनोखी शैली और निर्माण के तरीके से भरी हुई है, सदियों से भक्तों और विद्वानों को समान रूप से मोहित करती आ रही है। इस मूर्ति का रहस्य, जो अपनी बिना हाथ-पैर की शैली और नवीनिकरण की अनोखी परंपरा से भरा है, आज भी एक अनसुलझी पहेली है। आइए, इस ब्लॉग में हम Bhagwan Jagannath की मूर्ति के रहस्य को खोजने का प्रयास करेंगे और इसके पीछे छिपे कथानकों और विभिन्न व्याख्याओं को समझने की कोशिश करेंगे।
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भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का रहस्य | Bhagwan Jagannath Ki Murti Ka Rahasya
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति, पुरी धाम का मुख्य आकर्षण, सदियों से भक्तों और विद्वानों को समान रूप से मोहित करती रही है। इस मूर्ति का रहस्य, जो अपनी अनोखी शैली और निर्माण के तरीके से भरा है, आज भी एक अनसुलझी पहेली है।
मूर्ति की अनोखी शैली:
- बिना हाथ और पैर: जगन्नाथ की मूर्ति बिना हाथ और पैर की है, जिससे उनका रूप अन्य देवताओं से अलग होता है। यह शैली कबीलाई देवताओं की मूर्तियों से मिलती-जुलती है, जो प्राचीन काल में काष्ठ से बनी होती थी।
- विशाल आकार: मूर्ति का आकार विशाल है, जो उनकी महानता और शक्ति का प्रतीक है।
- अनुपातहीनता: मूर्ति के अंगों का अनुपात सामान्य मानव शरीर से अलग है, जो उनके अलौकिक स्वरूप को दर्शाता है।
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निर्माण का रहस्य:
- काष्ठ से निर्मित: मूर्ति काष्ठ से बनी है, जो प्राचीन काल में काष्ठ शिल्प की उत्कृष्टता का प्रमाण है।
- नवीनिकरण: हर 12 वर्ष में मूर्ति का नवीनिकरण किया जाता है, जो एक अनोखी परंपरा है। इस प्रक्रिया में मूर्ति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाता है और नई मूर्ति बनाई जाती है।
- रहस्यमयी निर्माण: मूर्ति के निर्माण की विधि और उपयोग की जाने वाली काष्ठ का रहस्य आज भी बना हुआ है।
विभिन्न व्याख्याएं:
- कबीलाई देवता: कुछ विद्वानों का मानना है कि मूर्ति की शैली प्राचीन कबीलाई देवताओं से प्रभावित है, जो काष्ठ से बनी होती थी।
- श्रीकृष्ण का रूप: कुछ विद्वान मानते हैं कि मूर्ति श्रीकृष्ण के रूप का प्रतीक है, जो द्वापर युग में पुरी में निवास करते थे।
- अलौकिक शक्ति: कुछ लोग मानते हैं कि मूर्ति में अलौकिक शक्ति है और इसकी शैली और निर्माण एक रहस्य है जो हमेशा बना रहेगा।
जगन्नाथ की मूर्ति कैसे बनती है | Jagannath Ki Murti Kaise Banate Hai
Bhagwan Jagannath की मूर्तियाँ नीम की लकड़ी से बनी हैं, एक ऐसा वृक्ष जो जीवन, पुनर्जन्म और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। हर 12 साल में, जब लकड़ी की प्राकृतिक उम्र पूरी हो जाती है, तो मूर्तियों को बदल दिया जाता है। यह एक अद्भुत अनुष्ठान है, जिसे “नवकलेबारा” कहते हैं, जो न केवल मूर्तियों का नवीनीकरण करता है, बल्कि देवताओं की ऊर्जा को भी नवीनीकृत करता है।
यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो जीवन चक्र, क्षय और पुनर्जन्म की अनिवार्यता को दर्शाता है, और हमें याद दिलाता है कि भौतिक रूप से तो सब कुछ परिवर्तनशील है, लेकिन आध्यात्मिक सत्ता हमेशा अमर रहती है। नवकलेबारा, हिंदू कैलेंडर की एक प्रमुख घटना, भव्यता और आध्यात्मिक उल्लास से मनाया जाता है, जो हमें Bhagwan Jagannath के साथ एक अटूट बंधन की याद दिलाता है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति कब बदली जाती है
श्री जगन्नाथ मंदिर की परंपरा, एक जीवंत नदी की तरह, समय के साथ बहती है, हर बारह साल में एक नया मोड़ लेती है। इस मोड़ को ‘नवकलेवर’ कहते हैं, जब Bhagwan Jagannath, बलभद्र, सुभद्रा, और सुदर्शन की लकड़ी की मूर्तियों को नए शरीर से सजाया जाता है। यह अनुष्ठान, जो सिर्फ़ अधिक महीने में ही होता है, जब समय का चक्र 12 या 19 साल का अंतराल पूरा करता है, एक अद्भुत प्रतीक है।
यह हमें याद दिलाता है कि जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र अनवरत चलता रहता है, और देवता भी इस चक्र से मुक्त नहीं हैं। नवकलेवर, एक नया शरीर धारण करने की यह परंपरा, हमें बताती है कि भौतिक रूप बदल सकता है, लेकिन आध्यात्मिक सत्ता हमेशा अमर रहती है।
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