बृहस्पति भगवान की कथा विधि: जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त करें

बृहस्पति भगवान की कथा विधि: जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना हर किसी के दिल में होती है। बृहस्पति का दिन Bhagwan Vishnu को समर्पित है, और इस दिन किया गया व्रत और कथा सुनना, जीवन में खुशहाली का मार्ग प्रशस्त करता है। कहते हैं, जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से गुरुवार को Bhagwan Vishnu की पूजा करता है और बृहस्पति व्रत की कथा कहता और सुनता है, उसकी गरीबी और कष्ट दूर हो जाते हैं। आइए, Brihaspati Bhagwan Katha Vidhi को सुनकर, Bhagwan Vishnu की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करें। 

बृहस्पति भगवान की कथा विधि | Brihaspati Bhagwan Katha Vidhi

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएं.
  • विष्णु जी और बृहस्पति देव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें.
  • बृहस्पति वार के दिन पीले वस्त्र पहनें.
  • Bhagwan Vishnu को पीले वस्त्र, फूल, फल, मिठाई आदि चढ़ाएं.
  • केले के पेड़ की पूजा करें. पूजा में केले के पत्तों का इस्तेमाल भी करें.
  • जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाएं.
  • केले की जड़ में चने की दाल और मुनक्का चढ़ाएं.
  • दीपक जलाकर पेड़ की आरती करें.
  • दिन में एक बार ही भोजन करें. खाने में चने की दाल या पीली चीज़ें खाएं. नमक न खाएं. पीले फल का इस्तेमाल करें.
  • पूजा के बाद बृहस्पति भगवान की कथा सुनें. कथा मंत्रोच्चार के बाद पढ़ें.

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बृहस्पति व्रत कथा के नियम

  • गुरुवार का व्रत Bhagwan Vishnu को समर्पित है।
  • यह व्रत सुख-समृद्धि और धन प्राप्ति के लिए किया जाता है।
  • सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  • Bhagwan Vishnu की पूजा करें, दीपक जलाएं, फूल, फल और मिठाई अर्पित करें।
  • गुरुवार की कथा सुनें या पढ़ें, Bhagwan Vishnu के गुणों का ध्यान करें।
  • पूरे दिन व्रत रखें, केवल फल, सब्जियां और दूध का सेवन करें।
  • शाम को सूर्यास्त के बाद व्रत तोड़ें, सादा भोजन करें।
  • गरीबों को भोजन, कपड़े या धन का दान करें।
  • अपनी मनोकामना Bhagwan Vishnu से करें।

बृहस्‍पतिवार व्रत की कथा | Brihaspati Vrat Ki Katha

प्राचीन समय की बात है। भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सेवा-सहायता करता था। वह प्रतिदिन मंदिर में भगवान दर्शन करने जाता था लेकिन यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। वह न ही पूजन करती थी और न ही दान करने में उसका मन लगता था।

एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु भेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी तो रानी ने भिक्षा देने से मन कर दिया।

रानी ने कहा कि हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत है अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं।

साधु ने कहा- देवी तुम तो बड़ी अजीब हो। धन और संतान से कौन दुखी होता है। इसकी तो सभी कामना करते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करते हैं। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआं, तालाब, बावड़ी बाग-बगीचे आदि का निर्माण कराओ। मंदिर, पाठशाला धर्मशाला बनवाकर दान दो। निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ। साथ ही यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो। ऐसे करने से तुम्हारा नाम परलोक में सार्थक होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

लेकिन रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली- महाराज मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मैं अन्य लोगों को दान दूं, जिसको रखने और संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाए अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं। साधु ने कहा- ठीक है, मैं तुम्हारी बात मानता हूं। ऐसा ही हो। तुम धन से मुक्त हो जाओ।

उस साधु ने अपनी दिव्य शक्ति से रानी के धन को नष्ट कर दिया। रानी के पास कुछ भी नहीं बचा। कुछ दिनों में महल में धन का अभाव होने लगा। रानी को भोजन और कपड़ों के लिए भी परेशानी होने लगी। वह बहुत दुखी हुई।

एक दिन राजा शिकार से लौटे तो उन्होंने देखा कि महल में सब कुछ बिखरा पड़ा है। रानी ने राजा को सारी बात बताई। राजा को भी अपनी पत्नी की गलती का एहसास हुआ। उन्होंने रानी को समझाया कि धन का उपयोग केवल अपने लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि जरूरतमंदों की मदद के लिए भी करना चाहिए।

राजा ने रानी को समझाया कि धन का उपयोग केवल अपने लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि जरूरतमंदों की मदद के लिए भी करना चाहिए। उन्होंने कहा कि धन का उपयोग करके हम लोगों की सेवा कर सकते हैं और उन्हें खुश कर सकते हैं। रानी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने राजा से क्षमा मांगी। उस दिन से रानी ने भी राजा के साथ मंदिर जाना शुरू कर दिया और दान पुण्य करने लगी।

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि धन का उपयोग केवल अपने लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि जरूरतमंदों की मदद के लिए भी करना चाहिए। धन का उपयोग करके हम लोगों की सेवा कर सकते हैं और उन्हें खुश कर सकते हैं।

बृहस्पतिवार व्रत की कथा का महत्व

यह कथा हमें सिखाती है कि धन का सही उपयोग करना कितना महत्वपूर्ण है। धन का उपयोग केवल अपने स्वार्थ के लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि जरूरतमंदों की मदद के लिए भी करना चाहिए। दान पुण्य करने से हमें मानसिक शांति और आत्म संतुष्टि मिलती है।

बृहस्पतिवार व्रत का पालन कैसे करें

बृहस्पतिवार के दिन Bhagwan Vishnu और बृहस्पति देव की पूजा करें। पीले रंग के वस्त्र पहनें और पीले रंग के फूल, फल, मिठाई आदि चढ़ाएं। केले के पेड़ की पूजा करें और उस पर जल में हल्दी डालकर चढ़ाएं। केले की जड़ में चने की दाल और मुनक्का चढ़ाएं। दीपक जलाकर पेड़ की आरती करें। दिन में एक बार ही भोजन करें और उसमें चने की दाल या पीली चीज़ें खाएं। नमक न खाएं। पीले फल का इस्तेमाल करें। बृहस्पतिवार व्रत का पालन करने से हमें Bhagwan Vishnu और बृहस्पति देव की कृपा प्राप्त होती है।

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