जगन्नाथ पुरी का इतिहास: जगन्नाथ पुरी मंदिर वास्तुकला, समय, कैसे पहुंचे, त्योहार

जगन्नाथ पुरी का इतिहास: भारत, धार्मिक स्थलों का खजाना, कई पवित्र धामों का घर है। इनमें से एक है जगन्नाथ पुरी, जो चार धामों में से एक है, और हिंदुओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह राजसी मंदिर ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ को समर्पित है, जो स्वयं भगवान विष्णु का अवतार हैं। बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित, पुरी उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल और पर्यटन स्थल है।

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इस भव्य मंदिर में भगवान जगन्नाथ का निवास है, जो आध्यात्मिक शक्ति और अद्भुत वास्तुशिल्प का संगम है। मुख्य मंदिर, जो ऊँचा खड़ा है, और परिसर के अंदर विभिन्न छोटे मंदिर आपको ऐसा महसूस कराएंगे जैसे आपने भगवान के निवास में प्रवेश किया हो। आइये, इस पवित्र धाम के रहस्यों और आध्यात्मिक महत्व को खोजते हैं।

जगन्नाथ पुरी का इतिहास | History of Jagannath Puri

जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास एक अद्भुत कथा है, जो भक्ति और चमत्कारों से सराबोर है। कहते हैं कि विश्ववासु नामक एक राजा जंगल में गुप्त रूप से भगवान जगन्नाथ की पूजा करता था, जिन्हें उस समय भगवान नीला माधबा के रूप में जाना जाता था। राजा इंद्रद्युम्न, भगवान के प्रति अत्यंत श्रद्धावान थे, और उनके बारे में और जानने की इच्छा उनके मन में जल रही थी। इसलिए, उन्होंने एक ज्ञानवान ब्राह्मण पुजारी, विद्यापति को विश्ववासु के पास भेजा।

विद्यापति के प्रयास व्यर्थ रहे, लेकिन उनकी नज़र विश्ववासु की बेटी ललिता पर पड़ी, और उन्होंने उनसे विवाह कर लिया। विद्यापति ने अपने ससुर से भगवान जगन्नाथ की पूजा स्थली के बारे में पूछताछ की, और विश्ववासु ने उनकी आँखों पर पट्टी बांधकर उन्हें उस गुप्त गुफा में ले जाया जहाँ वे पूजा करते थे। विद्यापति ने रास्ते में राई बिखेर दी, ताकि बाद में राजा इंद्रद्युम्न को वहाँ पहुँचने में सहायता हो सके।

राजा इंद्रद्युम्न ओडिशा में उस स्थान पर पहुँचे जहाँ विद्यापति ने राई बिखेरी थी, लेकिन भगवान जगन्नाथ की मूर्ति वहाँ नहीं थी। निराश हुए राजा को अचानक एक आवाज सुनाई दी, जिसने उन्हें निलशैला के ऊपर एक मंदिर बनाने का निर्देश दिया। राजा ने अपने सेवकों को एक शानदार मंदिर बनाने का आदेश दिया, और उसके बाद ब्रह्मा को मंदिर समर्पित करने के लिए बुलाया। लेकिन ब्रह्मा नौ वर्षों तक ध्यान में रहे, और इस दौरान मंदिर रेत के नीचे दब गया।

राजा इंद्रद्युम्न को सपने में एक आवाज सुनाई दी जिसने उनसे समुद्र के किनारे एक पेड़ का तैरता हुआ लट्ठा खोजने और उसमें से भगवान की मूर्तियाँ तराशने को कहा। राजा ने इस निर्देश का पालन किया, और एक नया मंदिर बनवाया, जिसमें उस पेड़ की लकड़ी से बनी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ स्थापित की गई। यह कथा आज भी भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए एक प्रमुख कथा है, जो उनकी श्रद्धा और विश्वास को दर्शाती है।

जगन्नाथ पुरी मंदिर वास्तुकला

ओडिशा में जगन्नाथ पुरी मंदिर सिर्फ़ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि वास्तुशिल्प का एक अद्भुत नमूना है। 400,000 वर्ग फुट में फैला यह मंदिर 20 फुट ऊंची दीवारों और 192 फुट ऊंचे टॉवर के साथ खड़ा है, जो 10 एकड़ में फैले पत्थर के मंच पर विराजमान है। चार विशाल कमरे – भोगमंडप (प्रसाद हॉल), नाता-मंदिर (नृत्य और संगीत हॉल), जगमोहन और देउल – अतीत की शानदार वास्तुशिल्प कला का प्रमाण हैं।

इस मंदिर के चार प्रमुख प्रवेश द्वार हैं, जिनमें से प्रत्येक का अलग नाम है: लायंस गेट, टाइगर गेट, हॉर्स गेट और एलिफेंट गेट। ग्रांड रोड पर स्थित मुख्य द्वार लायंस गेट है। मंदिर परिसर के अंदर कई अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर के शीर्ष पर एक विशाल पहिया भी है, जिसे नीला चक्र या नीला पहिया कहा जाता है, जो विभिन्न धातुओं से बना है। हर दिन इस चक्र पर एक नया झंडा फहराया जाता है, जो इस स्थान को और भी अनोखा बनाता है। जगन्नाथ पुरी मंदिर सिर्फ़ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और वास्तुशिल्प का अद्भुत संगम है, जो दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करता है।

जगन्नाथ पुरी मंदिर दर्शन करने का समय

जगन्नाथ पुरी मंदिर, भक्ति और शांति का केंद्र, साल भर सुबह 5:30 बजे से रात 10:00 बजे तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। यहाँ दर्शन का अनुभव अविस्मरणीय बनाने के लिए, आप इन समयों का ध्यान रखें:

सुबह का दर्शन: सुबह 5:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक आप शांति और एकाग्रता के माहौल में भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकते हैं। यह समय प्रार्थना और आध्यात्मिक अनुभव के लिए अद्भुत है।

शाम का दर्शन: दोपहर 4:00 बजे से रात 11:30 बजे तक आप मंदिर के सौंदर्य और आध्यात्मिक वातावरण का आनंद ले सकते हैं। शाम का समय आध्यात्मिक गीतों और आरती का समय होता है।

मंदिर में प्रवेश: मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को मंदिर के बाहर जमा करना पड़ता है।

पोशाक: मंदिर में आते समय साधारण और पारंपरिक कपड़े पहनें ।

विशेष समय:

  • प्रसादम: सुबह 11:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक
  • मंगला आरती: सुबह 5:00 बजे से 6:00 बजे तक
  • मेलम: सुबह 6:00 बजे से 6:30 बजे तक
  • सहनामेला: सुबह 7:00 बजे से 8:00 बजे तक
  • संध्या धूप: शाम 7:00 बजे से 8:00 बजे तक

जगन्नाथ पुरी मंदिर कैसे पहुंचे | Jagannathpur Mandir Kaise Pahunche

जगन्नाथ पुरी तक पहुँचने का सफ़र सुगम और सुखद है, चाहे आप कहाँ से भी आ रहे हों।

  • सड़क मार्ग से: पुरी शहर के बीचोंबीच स्थित यह मंदिर, भुवनेश्वर से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, जो सिर्फ़ 50 किमी दूर है। आप कोलकाता, भुवनेश्वर, विजाग आदि प्रमुख शहरों से बसों द्वारा आसानी से पुरी पहुँच सकते हैं।
  • ट्रेन से: पुरी रेलवे स्टेशन मंदिर से सिर्फ़ 3 किमी दूर है, और यहाँ भारत के पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख स्टेशनों से ट्रेनें आती हैं।
  • हवाई जहाज़ से: सबसे नजदीकी एयरपोर्ट भुवनेश्वर में है, जो भारत के सभी प्रमुख हवाई अड्डों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

जगन्नाथ पुरी प्रमुख त्योहार | Jagannath Puri Major Festivals

जगन्नाथ पुरी, अपनी आध्यात्मिकता के साथ-साथ अपने रंग-बिरंगे उत्सवों के लिए भी प्रसिद्ध है। ये उत्सव न सिर्फ़ श्रद्धा और उत्साह से भरे होते हैं, बल्कि एक अद्भुत सांस्कृतिक अनुभव भी प्रदान करते हैं।

1. रथ यात्रा: भक्ति का महाकाव्य: भगवान जगन्नाथ का मंदिर निवास से प्रस्थान वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। इस दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को शहर के मुख्य मार्ग पर शानदार रथों पर सवार करके ले जाया जाता है। यह दृश्य श्रद्धालुओं के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव होता है, जो देवी-देवताओं की झलक पाने के लिए हज़ारों की संख्या में इकट्ठा होते हैं।

2. मकर संक्रांति: खुशहाली का उत्सव: यह उत्सव पूरे पौसा महीने में मनाया जाता है। देवताओं को विशिष्ट वस्त्रों से सजाया जाता है, और उनके लिए मीठे पकवान और फल तैयार किए जाते हैं। यह त्योहार खुशहाली और अच्छी फसल के लिए मनाया जाता है।

3. स्नान यात्रा: पवित्रता का उत्सव: पूर्णिमा के दिन, देवताओं को स्नान कराया जाता है। यह उत्सव मंदिर से स्नाना बेदी तक एक भव्य जुलूस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार मई और जून के महीनों में आयोजित किया जाता है, और यह पवित्रता और शुद्धि का प्रतीक है।

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