कर्पूर गौरम करुणावतारम मंत्र: आरती के बाद क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं मंत्र

कर्पूर गौरम करुणावतारम मंत्र: भारतीय संस्कृति में, आरती एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो भक्ति और आध्यात्मिकता से भरपूर होता है। इस पवित्र प्रक्रिया के दौरान, हम अपने आराध्य देवता की स्तुति करते हैं और उनकी कृपा और आशीर्वाद की कामना करते हैं। आरती के बाद, एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है जो पूजा को और अधिक अर्थपूर्ण बनाता है।

यह मंत्र “Karpoor Gauram Karunavataram” है, जो न केवल देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन करता है बल्कि हमारे दिलों में भी एक गहरी शांति और आनंद का संचार करता है। आइए, इस मंत्र के शब्दों में छिपे हुए अर्थों को समझने की कोशिश करते हैं और जानते हैं कि यह हमारे जीवन में कैसे एक सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

कर्पूर गौरम करुणावतारम मंत्र | Karpur Gauram Karunavtaram Mantra

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

कर्पूर गौरम करुणावतारं मंत्र का अर्थ: हे शिव, आप कर्पूर की तरह चमकते हैं, करुणा के सागर हैं, संसार के सार हैं, और सर्पों के हार से सजे हुए हैं। आप माता भवानी के साथ मेरे हृदय में निवास करते हैं, मेरे जीवन का प्रकाश हैं, मेरे दुखों का नाशक हैं। आपको मेरा प्रणाम, हे शंकर! 

कर्पूर गौरम करुणावतारं पूरा मंत्र | Karpur Gauram Karunaavataram Complete Mantra

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

अर्थ: हर धड़कन में, हर सांस में, हर पल में, भगवान शिव की उपस्थिति का अनुभव होता है। वे कर्पूर की तरह गोरे, “कर्पूरगौरं,” दया के अवतार, “करुणावतारं,” इस मंत्र में अपनी दिव्यता का परिचय देते हैं।

“मंगलम भगवान् विष्णु,

मंगलम गरुड़ध्वजः।

मंगलम पुन्डरी काक्षो,

मंगलायतनो हरि॥”

अर्थ: भगवान विष्णु के वाहन, गरुड़, जिनके पंखों में उड़ान का जादू और आँखों में पुन्डरीक की चमक बसती है, वो शुभता के प्रतीक हैं। इस मंत्र में गरुड़ की महिमा और उनके स्वामी, भगवान विष्णु की आध्यात्मिक ऊर्जा का वर्णन है।

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सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके |

शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||

अर्थ: माता पार्वती, शिव की अर्धांगिनी, त्रिभुवन की रानी, उनके चरणों में समर्पित यह मंत्र, उनकी दिव्यता और कृपा का गुणगान करता है।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वं मम देव देव

अर्थ: इस मंत्र में भक्ति की ऐसी गहराई है, जो ईश्वर को माता, पिता, बंधु, मित्र, विद्या और धन सब कुछ मानती है। यह प्रेम और आत्मसमर्पण की परिभाषा है, जो ईश्वर को जीवन का केंद्र मानती है।

कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा

बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात

करोमि यध्य्त सकलं परस्मै

नारायणायेति समर्पयामि ||

अर्थ: यह मंत्र आत्मसमर्पण का एक उच्चतम स्तर दर्शाता है, जहां हर कार्य, हर विचार, हर क्रिया परमात्मा को समर्पित है। यह भक्ति का चरमोत्कर्ष है, जहाँ व्यक्ति खुद को ईश्वर के लिए समर्पित कर देता है।

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे

हे नाथ नारायण वासुदेव |

जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव

गोविन्द दामोदर माधवेती ||

अर्थ: श्री कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति से लबरेज यह मंत्र, उनकी दिव्यता का गुणगान करता है। “गोविन्द,” “हरे,” “मुरारे,” हर नाम उनकी अनोखी शक्ति और करुणा का प्रतीक है। यह मंत्र उनसे अमृत की बौछार करने की प्रार्थना करता है, जिससे जीवन सुख और सार्थकता से भर जाए।

कर्पूर गौरम मंत्र के लाभ

कर्पूर गौरम करुणावतारं” मंत्र का जप करने के कई लाभ हैं:

  • मन की शुद्धि: यह मंत्र मन को शुद्ध करने में सहायक है, जिससे आंतरिक शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  • शांतता और आनंद: इस मंत्र का जप मन को शांत करता है और आनंद की अनुभूति करवाता है।
  • शिव की कृपा: यह मंत्र भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद को आकर्षित करता है।
  • धार्मिक कथाएँ: इस मंत्र की महत्ता को प्रमाणित करने वाली अनेक धार्मिक कथाएँ हैं, जो इसके जप के फायदों को दर्शाती हैं।

आरती के बाद इस मंत्र का पाठ

आरती के बाद “कर्पूर गौरम करुणावतारं” मंत्र का पाठ करना, शिव की महिमा और दिव्यता का अनुभव करने का एक अद्भुत तरीका है। यह श्लोक शिव को “कर्पूरगौरं,” कपूर की तरह गोरे और “करुणावतारं,” करुणा के अवतार के रूप में प्रस्तुत करता है। विष्णु द्वारा शिव-पार्वती के विवाह में गाया गया यह श्लोक, शिव के अद्भुत स्वरूप की प्रशंसा करता है। भक्त इस श्लोक का पाठ करके भगवान शिव की उच्च महिमा को स्मरण करते हैं, और उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं। यह श्लोक शिव की आराधना का एक सुंदर तरीका है, जो भक्ति और समर्पण को बढ़ावा देता है।

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