पंचमुखी हनुमान कवच: ॐ अस्य श्री पञ्च मुख हनुमन्मन्त्रस्य पढ़ने के लाभ

पंचमुखी हनुमान कवच :- एक ऐसा अत्यंत प्रभावशाली कवच है I जिसको धारण करने से जातक सदा विजय होता है I तथा किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा उसका अहित नहीं कर सकती है I इस कवच को धारण करने से मानव पर किसी भी तांत्रिक प्रभाव, जादू टोना आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है I और वह निर्भय होकर प्रत्येक स्थान पर विचरण करता है I

Panchmukhi Hanuman Kavach

पंचमुखी हनुमान कवच अन्य को कार्यों को भी पूर्ण करने में उपयोगी है I संस्कृत में मूल कवच है परंतु इसका पाठ हिंदी में भी बहुत फलदायक है I इस लेख में हम आपको पंचमुखी हनुमान कवच का हिंदी भावार्थ, साथ में Panchmukhi Hanuman Kavach पाठ के फायदे, मंत्र का पाठ कैसे करें और पंचमुखी हनुमान कवच अर्थ सहित आपको बताएंगे

पंचमुखी हनुमान कवच के लाभ

पंचमुखी हनुमान कवच एक शक्तिशाली रक्षा मंत्र है I जो Hanuman Ji के पांच रूपों की शक्ति को प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है I इस कवच का मुख्य उद्देश्य आपत्तियां और बुराइयों से सुरक्षा करने के लिए है I

  1. इसका एक पाठ करने से शत्रुओं का विनाश होता है I 
  2. दो पाठ करने से कुटुंब की वृद्धि होती है I
  3. इस कवच का पाठ करने से धन लाभ होता है I
  4. तीन पाठ करने से रोगों का समान होता है I
  5. चार पाठ करने से वशीकरण दुर  होता है I
  6. हनुमान कवच का पाठ करने पर ज्ञान दृष्टि बढ़ती है I
  7. इस कवच का नौ बार पाठ करने से राज्य सुखोपभोग होता है I

यह कवच Bajrangbali का प्रिय पाठ है इसलिए इस कब्ज का पाठ करने से साधक को अनेक फायदे होते हैं I इसका सही विधि-वादन पूर्वक और सावधानी से करना चाहिए I

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पंचमुखी हनुमान कवच | Panchmukhi Hanuman Kavach

सामान्य जल पीकर आसन पर बैठकर दाहिनी हाथ में जल अक्षत पुष्प, सुगंधित लेकर निम्नलिखित वियोग मंत्र का पाठ करके प्रतिमा पर डाल दे I

॥ विनियोग मन्त्रः॥

ॐ अस्य श्री पञ्च मुख हनुमन्मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दः,

श्री पञ्च मुख विराट हनुमान देवता, ह्रीं बीजम्, श्रीं शक्तिः क्रौं कीलकम्,

कूं कवचम्, क्रैं अस्त्राय फट् मम सकल कार्यार्थ सिद्धयर्थे जपे।

पाठे विनियोगः॥

पंचमुखी हनुमान कवच अर्थ सहित 

॥ ईश्वर उवाच ॥ 

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणु सर्वाङ्गिसुन्दरम्। 

यत्कृतं देव देवेशि ध्यानं हनुमतः प्रियम।1।

हे सर्वाङ्ग सुन्दरी ! देवताओं के भी देवता श्री शिवजी ने अपने प्रिय 

हनुमान जी का जिस प्रकार ध्यान (साधन) किया था वह मैं तुम्हें बताता हूँ। 

जरा सावधानी से श्रवण करना ।

पंचवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्च नयनैर्युतम् । 

बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ।2।

पाँच मुख वाले महा भयंकर पन्द्रह नेत्र वाले दस भुजा युक्त 

श्री हनुमान जी भक्तों की समस्त कामनाएं पूर्ण करते हैं।

पूर्वं तु वानर वक्त्रं कोटि सूर्यसमप्रभम्। 

दंष्ट्राकरालवदनं भृकुटी कुटिलेक्षणम्।3।

पूर्व दिशा वाला मुख करोड़ों भास्करों के समान उज्जवल कान्तिमयी है। 

इनके दाँत भयंकर हैं। क्रोध के कारण इनकी भृकुटि चढ़ी हुई है। 

इनका श्री मुख वानर स्वरूपा है।

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्। 

अत्युग्रतेजोवपुष भीषणं भयनाशनम्।4।

इस श्री मुख के दक्षिण की तरफ वाला मुख श्री नरसिंह स्वरूपा है 

जो कि भीषण भयों का भी नाश कर देता है। 

यह अति उग्र, शीघ्र प्रभावी, महा भयंकर व महा अद्भुत स्वरूप है।

पश्चिमे गारुडं वक्त्रं वक्रतुंडंमहाबलम्। 

सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्।5।

इनके पश्चिम की तरफ वाला श्री मुख श्री गरुड़ स्वरूपा है 

जिनकी चौंच टेढ़ी है एवं यह महा बलशाली हैं। 

यह समस्त नागों का अन्त कर देते हैं। 

इनकी कृपा से विषों व भूतों का समापन होता है।

उत्तर सौकरं वक्त्रं कृष्णदीप्तनभोमपम्। 

पाताले सिहं बेतालं ज्वररोगादिकृन्तनम्।6।

इनसे उत्तर की तरफ वाला श्री मुख सौकर स्वरूपा है 

जो कि आकाश के समान देदीप्यमान है। 

यह नीले रंग वाले हैं जो कि पाताल, सिंह, बेताल, 

ज्वर व अन्य रोगों का विनाश करते हैं।

उर्ध्वं हयाननं घोरं दानवांतकरं परम्। 

येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र ताटकाख्यम् महासुरम।7।

ऊपर की तरफ वाले श्री मुख हयानन के समान है 

जो कि घोर दानवों का भी अन्त कर देते हैं। 

हे विप्र श्रेष्ठ इसी स्वरूप से महाबली तारकासुर का वध किया था।

दुर्गते शरणं तस्य सर्वशत्रुहरं परम्। 

ध्यात्वा पंचमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्।8।

जब अत्यधिक दुर्गति हो रही होती है 

तब इनकी शरण में आने से समस्त शत्रुओं का संहार होता है, 

दुर्गति का अन्त होता है। इनकी दया की निधि प्राप्त होती है 

यदि रुद्र स्वरूप पंच मुख वाले श्री हनुमान जी का ऐसा ध्यान किया जाये।

खड़गं त्रिशुलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम्। 

मुष्टौ तु कोमोदकौ वृक्षं धारयन्तं कमंडलुम्।9।

खड़ग, त्रिशुल, खटवांग, पाश, अंकुश, 

पर्वत, मुष्ठि, कौमोदकी, कमण्डल का धारण किया हुआ है।

भिदिपालं ज्ञानमुद्रां दसर्वि मुनि 

पुंगव एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम।10।

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभूषण भूषितम्। 

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगंधानुलेपनम्।11।

भिदिपाल, ज्ञानमुद्राओं को प्रदर्शित करते हुए 

समस्त आभरणों से विभूषित श्री हनुमान जी 

जो कि श्वासन पर बैठे हुए हैं। 

इन्होंने माला एवं दिव्य गंधादि धारण कर रखी है। 

ऐसे स्वरूप का मैं ध्यान करता हूँ।

सर्वैश्वर्यमयं देवं हनुमद् विश्वतोमुखम्। 

पंचास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णं वक्त्रं संशखविभृतं कपिराजवीर्यम्। 

पीताम्बरादिमुकुटैरपि शोभितांगं पिंगाक्षमञ्चनिसुतं ह्यनिशं स्मरामि।12।

समस्त ऐश्वर्यों के साथ पीताम्बर एवं मुकुट से सुशोभित, 

कवि श्रेष्ठ, जिनके माथे पर चन्द्र सोभायमान है। 

ऐसे पीले नेत्रों वाले श्री हनुमान जी का मैं स्मरण करता हूँ।

मर्कटस्य महोत्साहं सर्वशोक विनाशनम्। 

शत्रु संहरमाम रक्ष श्रिय दापयम हरिम्।13।

ऐसे हनुमान जी ! आप बहुत उत्साही हैं और आप 

समस्त शोकों का शमन करते हैं। 

आप मेरे शत्रुओं का संहार कीजिये व मेरी रक्षा कीजिये ।

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पंचमुखी हनुमान बीज मंत्र | Panchmukhi Hanuman Beej Mantra

॥अथ कवच मन्त्रः॥

ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय स्वाहा।

ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय वं वं वं वं वं फट् स्वाहा॥

ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय फं फं फं फं फं स्वाहा॥

ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय खं खं खं खं खं मारणाय स्वाहा॥

ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय ठं ठं ठं ठं ठं स्तंभनाय स्वाहा॥

ॐ ह्री हरिमर्कटमर्कटाय डं डं डं डं डं आकर्षणाय सकलसम्पत्काराय 

पंचमुखिवीरहनुमते परयन्त्र- तंत्रोच्चाटनाय स्वाहा॥

अथ दिग्बन्धनम्  

ॐ कं, खं, गं, घं, डं, चं, छं, जं, झं, जं, दं, ठं, डं, णं,

तं, थं, दं, धं, नं, पं, फं, बं भं, मं, यं, रं, लं, वं, शं, षं, सं, हं, क्षं स्वाहा । इतिदिग्बन्धः ।

ॐ पूर्व कपिमुखाय पंचमुखिहनुमते ठं ठं ठं ठं ठं 

सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा॥

ॐ दक्षिणमुखे पंचमुखिहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय

ह्रां, ह्रां, ह्रां, ह्रां ह्रां सकल भूत प्रेतदमनाय स्वाहा॥

ॐ पश्चिममुखे गरुडासनाय पंचमुखिवीरहनुमते 

मं, मं, मं, मं, मं सकलविषहराय स्वाहा॥

ॐ उत्तरमुखे आदि वराहाय लं, लं, लं, लं, 

लं नृसिंहायनीलकंठायपंचमुखिहनुमते स्वाहा॥

ॐ उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय, रुंरुंरुंरुं रुं 

रुद्रमूर्तयेपंचमुखिहनुमते सकलजनवश्यकराय स्वाहा॥

ॐ अन्जनीसुताय वायुपुत्रायमहाबलाय रामेष्ट- फाल्गुनसखाय 

सीताशोकनिवारणाय लक्ष्मणप्राणरक्षकाय 

कपिसैन्यप्रकाशायदशग्रीवाभिमानदहनाय 

श्रीरामचन्द्रवर- प्रसादकाय महावीर्याप्रथमब्रह्मांडनायकाय 

पंचमुखिहनुमते भूत-प्रेत-पिशाच- ब्रह्मराक्षस -शाकिनी- डाकिनी- अन्तरिक्षय हपरयन्त्र-परमयन्त्र-परतन्त्रसर्वग्रहोच्चाट नाय सकलशत्रु के संहारणाय 

पंचमुखिहनुमद्वरप्रसादक

सर्व रक्षकाय जं जं जं जं जं स्वाहा॥

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