Putrada Ekadashi Vrat Katha 2024: सावन महीना भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है, लेकिन इस महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी, पुत्रदा एकादशी, भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है, यश, कीर्ति, सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है। आज, 16 अगस्त को, सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जा रहा है। अगर आप भी संतान की प्राप्ति चाहते हैं, तो इस व्रत को करें और पुत्रदा एकादशी की कथा का पाठ करें।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम आपको Putrada Ekadashi Vrat Katha, व्रत विधि और महत्व के बारे में विस्तार से बताएंगे। आइए जानते हैं कि पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से आपको क्या लाभ मिलेंगे और कैसे आप इस व्रत को सही तरीके से कर सकते हैं।
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पुत्रदा एकादशी का महत्त्व | Importance of Putrada Ekadashi
अर्जुन की जिज्ञासा को शांत करते हुए, श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले, “हे अर्जुन! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘Putrada Ekadashi’ कहा जाता है। यह एकादशी संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा विधि पूर्वक की जाती है।”
श्रीकृष्ण ने आगे बताया, “इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को पुत्र, धन, यश, कीर्ति और सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत करने वाले को तपस्वी, ज्ञानी और संपन्नता प्राप्त होती है। इस एकादशी का व्रत करने के बाद श्रावण Putrada Ekadashi Vrat Katha सुनना अत्यंत आवश्यक है। ऐसा करने से व्रत पूर्ण होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस कथा को सुनने मात्र से ही वायपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है।” अर्जुन ने ध्यानपूर्वक श्रीकृष्ण की बातें सुनी और फिर उत्सुकता से पूछा, “हे मधुसूदन! इस Putrada Ekadashi Vrat Katha क्या है? कृपया मुझे बताएं!”
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Putrada Ekadashi Vrat Katha 2024
द्वापर युग में, महिष्मति नगरी का राजा महीजित अपने राज्य का आनंद लेने में असमर्थ था। पुत्रहीन होने के कारण, उसका जीवन दुख से भरा था। वह ब्राह्मणों और देवताओं का सम्मान करता था, जनता का पालन-पोषण करता था, और न्यायपूर्वक शासन करता था, फिर भी वह पुत्ररत्न से वंचित था।
अपने दुख को दूर करने के लिए, राजा महीजित ने अपने मंत्रियों और जनता के प्रतिनिधियों को एक तपस्वी मुनि की तलाश में भेजा। वे लोमश मुनि के आश्रम पहुँचे, जो ज्ञानी, तपस्वी और परमात्मा में लीन थे।
मुनि से राजा की समस्या सुनकर, लोमश ऋषि ने राजा के पूर्व जन्म की कहानी सुनाई। वे एक गरीब वैश्य थे, जो एकादशी के दिन प्यासी गाय को पानी पीने से रोककर जल पीने लगे थे। इस पाप के कारण उन्हें पुत्र वियोग का कष्ट सहना पड़ रहा था। ऋषि ने बताया कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे पुत्रदा एकादशी कहते हैं, का व्रत करने से राजा का पाप नष्ट हो जाएगा और उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।
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मंत्रियों और जनता ने राजा को इस व्रत के बारे में बताया, और श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन सभी ने व्रत और जागरण किया। राजा के पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो गए, और रानी ने गर्भधारण किया। समय पर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। इसलिए, इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है, क्योंकि यह संतान सुख की इच्छा पूरी करती है। इस व्रत को करने से मनुष्य पापों से मुक्त होकर सुख भोगता है और परलोक में स्वर्ग प्राप्त करता है।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान सुख के लिए सबसे प्रभावी माना जाता है। जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और इसके माहत्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की प्राप्ति होती है। श्रीहरि की कृपा से वह मोक्ष को प्राप्त करता है।
कथा का सारांश | Summary of the narrative
पुत्र का होना तो सौभाग्य की बात है, परंतु सर्वगुण संपन्न, सुयोग्य पुत्र प्राप्त करना, किसी अमूल्य रत्न को पाने जैसा है। ऐसा पुत्र केवल साधुजनों के आशीर्वाद और भगवान की कृपा से ही मिलता है। इस कलयुग में, जहाँ नैतिकता का पतन हो रहा है, सुयोग्य संतान प्राप्ति का एक अद्भुत उपाय है पुत्रदा एकादशी का व्रत। यह व्रत न केवल संतान सुख प्रदान करता है, बल्कि भगवान की कृपा से, एक ऐसे पुत्र का आशीर्वाद देता है जो अपने माता-पिता का नाम रोशन करेगा।