राम स्तुति श्लोक संस्कृत: श्री राम, हिन्दू धर्म, संस्कृति और धरोहर का अमूर्त स्रोत है, जिसकी कहानी और शिक्षाएँ हमारे समाज में अनमोल मानी जाती हैं। श्री राम के नाम के श्लोक, जो उनकी महिमा और अद्भुत गुणों का वर्णन करते हैं, हमारे जीवन में एक अद्वितीय प्रेरणा का स्रोत हैं। ये श्लोक, भक्ति, शक्ति, और धर्म के एक सामर्थ्यपूर्ण संगम को प्रतिष्ठित करते हुए, हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं में मार्गदर्शन करते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं।
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इस ब्लॉग में, हम आपको श्री राम के श्लोकों की आद्यता से परिचित कराएंगे, जिनमें छिपी गहरी ज्ञान की भंडार है। इन श्लोकों का अध्ययन हमें धर्मिक और आध्यात्मिक सुजीवन की ओर प्रवृत्ति करता है, और श्री राम के जीवन और शिक्षाओं को और गहराई से समझने में मदद करता है।
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राम स्तुति श्लोक संस्कृत | Ram Stuti Shloka Sanskrit
आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।
भावार्थ: आदि में राम ने तपोवन में गमन किया, मृग को मारकर सीता का हरण किया। फिर जटायु की मृत्यु, सुग्रीव के साथ मिलकर बातचीत, बाली की निर्दलन, समुद्र को तरकर लंका की दहन, और इसके बाद रावण, कुम्भकर्ण, और अखिरकार लंका के नाश का वर्णन है। यही है रामायण।
जय श्री राम श्लोक | श्री राम श्लोक अर्थ सहित
“राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सह्स्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ।।”
भावार्थ: “जो कोई भी राम, राम कहता है, राम की आत्मा में रमता है। हजारों नामों के बराबर है, राम का यह नाम।
“भज़ रामं द्वापरनायकं भज़ रामं युगप्रवर्तकम्।
सार्थकनामो श्रीरामस्य शुचितो युगयुगान्तरो।।”
भावार्थ: भगवान राम की उपासना करो , राम नाम की भजन करो , जो द्वापर युग के नायक हैं, जो युग के प्रबर्तक और जो सदैव युगों-युगों तक अपने सार्थक नामों के साथ पवित्र हैं।
“रामो विग्रहवान् धर्मः साधुः सत्यपराक्रमः।
राजा सर्वस्य लोकस्य देवानां मधवानिव।।”
भावार्थ: राम रूपशाली है, धर्म का प्रतीक है, सच्चा है और पराक्रमी है। वह सभी लोकों का राजा है, देवताओं के समान मधुर है।
भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसंपदां।
तर्जनं यमदूतानाम राम रामेति गर्जनं।।
भावार्थ: राम का नाम भवरोग को नष्ट करने वाला है, सुख-समृद्धि का साधन है। यमदूतों को भी भयभीत करने वाला है, राम राम कहना।
“रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं।
काकुत्स्थं करूणार्णवं गुणनिधिम विप्रप्रियं धार्मिकम।।
राजेन्द्रम सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तिमूर्ति।
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम।।”
भावार्थ: मैं उस राम को वंदन करता हूँ, जो लक्ष्मण के पूर्वज, रघुकुल के उत्तम, सीता के पति, सुन्दर है। वह काकुत्स्थ, करुणा का सागर, गुणों का खजाना, ब्राह्मणों के प्रिय, धार्मिक है। वह राजेन्द्र, सत्य के पुरुष, दशरथ के पुत्र, श्यामल, शांतिस्वरूप है। मैं वह राघव को वंदन करता हूँ, जो रावण का संहार करने वाले, रघुकुल का तिलक हैं।
“रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम् ।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति।।”
भावार्थ: जो व्यक्ति राम, स्कंद, हनुमान, वैनतेय (यानि गरुड़), को सोते समय स्मरण करता है, उसके दुःस्वप्नों का नाश होता है।
“माता रामो मत्पिता रामचन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र :।।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं।
जाने नैव जाने न जाने।।”
भावार्थ: मेरी माँ राम हैं, मेरे पिता भी रामचंद्र हैं। मेरे स्वामी राम हैं, मेरे दोस्त भी रामचंद्र हैं। उसको मैं जानू या न जानू मेरा सर्वस्य परम दयालु रामचंद्र है।
“ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥”
भावार्थ: नीलोत्पल वर्ण के और कान्हे विशेष रूप से सुन्दर, राजीवलोचन भगवान राम को ध्यान करने वाला। जानकी और लक्ष्मण के साथ, और जटाओं से युक्त, मुकुट से सजीवन राम को मनन करता हूँ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥
भावार्थ: मैं मन से श्रीरामचन्द्र के चरणों को स्मरण करता हूँ। मैं वाणी से श्रीरामचन्द्र के चरणों की स्तुति करता हूँ। मैं शिरसा (सिर झुकाकर) श्रीरामचन्द्र के चरणों को नमस्कार करता हूँ। मैं शरण में श्रीरामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ।
Shri Ram Shlok | श्री राम वंदना श्लोक
“लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।।”
भावार्थ: लोकों के आकर्षक, युद्ध में साहसी, राजीवनेत्र (कमलनेत्र) वाले, रघुवंश के नाथ, कारुण्य स्वरूप, दयामयी हृदयवाले, ऐसे श्रीरामचन्द्र की शरण में हम आश्रय लेते हैं।
ॐ दाशरथये विद्महे जानकी वल्लभाय धी महि॥
तन्नो रामः प्रचोदयात्।।
भावार्थ: ॐ, दशरथ के पुत्र का ध्यान करते हैं, माता सीता की कृपा से, आज्ञा से मुझे उच्च बुद्धि और शक्ति प्राप्त हो, भगवान् श्री राम मेरे मस्तिष्क को बुद्धि और तेज़ से प्रकाशित करें, बुद्धि और तेज प्रदान करें।
“न मे समा रावणकोट्योऽधमाः।
रामस्य दासोऽहम् अपारविक्रमः।।”
भावार्थ: करोड़ों रावण भी मेरे पराक्रम में मेरी तुलना नहीं कर सकते, यह केवल मेरे बजरंगबली रूप की महाशक्ति के कारण नहीं, बल्कि इसका मुख्य कारण है कि प्रभु श्रीराम मेरे स्वामी हैं और मुझे उनसे अविरत शक्ति प्राप्त होती है।
“रामस्य चरितं श्रुत्वा धारयेयुर्गुणाञ्जनाः,
भविष्यति तदा ह्येतत् सर्वं राममयं जगत।।”
भावार्थ: प्रभु श्रीराम के चरित्र, उनके कथा को सुनकर जब मनुष्य अपने जीवन में उन गुणों को (राम के गुणों का आदान-प्रदान ) धारण करेंगे, तो यह समय से ही संसार राममय हो जायेगा
“रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर:॥”
भावार्थ: जिनका श्याम रंग दूर्वा के पत्तों के समान है, कमलनयन हैं और पीतांबर धारण करते हैं, ऐसे श्रीराम जी की उपरोक्त दिव्य नामों की स्तुति करने वाला व्यक्ति संसार चक्र में फंसा नहीं रहता।
“नमामि दूतं रामस्य सुखदं च सुरद्रुमम्
पीनवृत्त महाबाहुं सर्वशत्रुनिवारणम्।।”
भावार्थ: मैं उस राम दूत हनुमान को नमस्कार करता हूँ, जिन्होंने राम को आनंदित किया। वह देवी की इच्छाएं पूरी करने में सक्षम कल्पवृक्ष की भावना वाले हैं। उनकी लंबी भुजाएँ हैं, जो सभी शत्रुओं को दूर करने में सक्षम हैं।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव, दैत्यवंश-निकन्दनं,
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ-नन्दनं।।
भावार्थ: भजन करो उस दीनबंधु को, जो दीनों का मित्र है, दिनेश दानव है, जो दैत्यवंश को नष्ट करने वाला -रघुनंदन है जो कौशल्या के चंद्र है, दशरथ के पुत्र है।
“रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।”
भावार्थ: हे राम, रामभद्र, रामचंद्र ! हे रघुनाथ, नाथ, सीता के पति! आपको नमस्कार है।