कनकधारा स्तोत्र: कनकधारा स्तोत्र, धन और समृद्धि की देवी, माता लक्ष्मी को आकर्षित करने वाला एक अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है। यह स्तोत्र, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने और धन-धान्य से परिपूर्ण जीवन जीने का एक अद्भुत माध्यम माना जाता है। कहते हैं कि इस स्तोत्र का नियमित और विशेष रूप से हर शुक्रवार को पाठ करने से व्यक्ति को धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती। देवी लक्ष्मी, अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं और उन्हें धनवान और ऐश्वर्यवान बना देती हैं।
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यह स्तोत्र, आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा एक विशेष परिस्थिति में रचा गया था। उनकी रचनाओं में यह स्तोत्र, देवी लक्ष्मी की कृपा पाने का एक अद्वितीय उपाय है। आइए, इस स्तोत्र के जाप से हम भी माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें और अपने जीवन में धन-धान्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें।
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श्री कनकधारा स्तोत्रम् | Shri Kanakadhara Stotram
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।
कनकधारा स्तोत्र की कथा
एक समय की बात है, जब आदिगुरु शंकराचार्य जी भिक्षा मांगते हुए एक ब्राह्मण के घर पहुंचे। ब्राह्मण और उसकी पत्नी, तपस्वी शंकराचार्य जी की तेजस्विता देखकर अभिभूत हो गए। लेकिन, दुर्भाग्यवश, उनके पास शंकराचार्य जी को भिक्षा देने के लिए कुछ भी नहीं था। ब्राह्मण की पत्नी, अपनी दीन-हीन स्थिति से दुखी होकर, आंसू बहाने लगी।
उसने घर में रखे कुछ सूखे आंवले लिए और नम आंखों से शंकराचार्य जी को भिक्षा में दे दिए। शंकराचार्य जी, ब्राह्मण की पत्नी की दशा देखकर द्रवित हो गए। उन्होंने तुरंत ही देवी लक्ष्मी को संबोधित करते हुए एक स्तोत्र की रचना की।
उन्होंने देवी लक्ष्मी को “अधिष्ठात्री”, “करुणामयी”, “वात्सल्यमयी”, “नारायण पत्नी”, “महालक्ष्मी” जैसे नामों से पुकारा और उनसे ऐश्वर्य और दशविध लक्ष्मी प्रदान करने की प्रार्थना की।
शंकराचार्य जी के स्तोत्र का जाप करते ही, वहां सोने की वर्षा होने लगी! सोना आसमान से बरस रहा था, जैसे वर्षा में पानी बरसता है। इस घटना ने सभी को चकित कर दिया।
इस स्तोत्र का नाम “कनकधारा स्तोत्र” रखा गया, क्योंकि “कनक” का अर्थ सोना होता है और स्तोत्र के जाप से सोने की वर्षा हुई थी। इस स्तोत्र को आज भी धन-धान्य और समृद्धि प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली मंत्र माना जाता है।