श्री राम रक्षा स्तोत्र: श्री राम की कृपा की तलाश में, जब जीवन में अंधेरा छा जाता है, तब ऋषि कौशिक द्वारा रचित “राम रक्षा स्तोत्र” एक प्रकाश स्तंभ बनकर उभरता है। इस स्तोत्र में भक्ति की गहराई और रक्षा की कामना एक साथ समाहित हैं। यह स्तोत्र न केवल सभी प्रकार की बाधाओं और शत्रुओं से बचाता है, बल्कि नवग्रहों के कुप्रभाव से भी मुक्ति दिलाता है। श्री राम के यथार्थ वर्णन, उनकी वंदना और श्री राम नाम की महिमा से सराबोर, यह स्तोत्र भक्तों को सुरक्षा और आशीर्वाद प्रदान करता है।
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श्री राम रक्षा स्तोत्र की विधि
- राम रक्षा स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- गुरुवार के दिन इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
- आप मंदिर में जाकर या घर पर श्री राम की प्रतिमा या फोटो के सामने बैठकर पाठ कर सकते हैं।
- नवरात्रि के दौरान इस स्तोत्र का 11 बार जाप करने से अत्यंत शुभ फल प्राप्त होता है।
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श्री राम रक्षा स्तोत्र | Shri Ram Raksha Stotra
श्री राम रक्षा स्तोत्रम्
श्री गणेशाय नमः॥
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य बुधकौशिक ऋषि:।
श्रीसीतारामचंद्रो देवता।
अनुष्टुप् छन्द:। सीता शक्ति:।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम्।
श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षा स्तोत्र जपे विनियोग:॥
अर्थ:
इस श्री राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, माता सीता और श्री रामचंद्र जी देवता हैं, अनुष्टुप छंद है, मां सीता शक्ति हैं, श्री हनुमान जी कीलक हैं तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता है।
॥ अथ ध्यानम्॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्॥
अर्थ:
जो धनुष बाण धारण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासन की मुद्रा में विराजित हैं और पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके नेत्र कमल दलों से भी सुन्दर हैं, जो प्रसन्नचित्त हैं, जिनके नेत्र, बाईं ओर अङ्क अर्थात गोद में बैठी सीता के मुख कमल से मिले हुए हैं तथा जिनका रंग बादलों की तरह श्याम है, उन अजानबाहु, विभिन्न आभूषणों से विभूषित जटाधारी श्री राम का मैं ध्यान करता हूँ। ऐसे प्रभु श्री रामचन्द्रजी का ध्यान राम रक्षा स्तोत्र के पूर्व हमें करना है।
॥ इति ध्यानम्॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥1॥
अर्थ:
श्री रघुनाथ का चरित्र १०० कोटि के विस्तार वाला है। इस चरित्र का एक- महापातकों का नाश करने वाला [करता] है।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥2॥
अर्थ:
नीलकमल के समान श्याम वर्ण वाले, कमल जैसे नेत्र वाले, जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी और लक्ष्मण के सहित ऐसे भगवान श्री राम का मैं ध्यान करता हूं।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तञ्चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥ 3॥
अर्थ:
जाे अजन्मे हैं अर्थात जिनका जन्म न हुआ हो, जो स्वयं प्रकट हुए हों, सर्वव्यापक अर्थात सभी जगह व्याप्त हों, हाथों में खड्ग, तूणीर, धनुष-बाण धारण किये राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत की रक्षा हेतु अवतरित श्री राम का मैं ध्यान करता हूं।
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरोमे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥4॥
अर्थ:
मैं सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाले और समस्त पापों का नाश करने वाले श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ। हे राघव मेरे सिर की रक्षा करें, हे दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें।
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियश्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल:॥5॥
अर्थ:
हे कौशल्या के पुत्र श्री राम मेरे नेत्रों की रक्षा करें, हे विश्वामित्र के प्रिय राघव मेरे कानों की रक्षा करें, हे यज्ञ रक्षक श्री राम मेरे घ्राण अर्थात नाक की रक्षा करें और हे सुमित्रा के वत्सल रघुपति मेरे मुख की रक्षा करें।
जिव्हा विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक:॥6॥
अर्थ:
सर्व विद्या को धारण करने वाले श्री राम मेरी जिह्वा अर्थात वाणी की रक्षा करें, भरत ने जिन्हें वंदन किया है ऐसे श्री राम मेरी कंठ की रक्षा करें। दिव्य अस्त्र जिनके कंधों पर है ऐसे श्री रघुपति राम मेरे कंधों की रक्षा करें और जिनने महादेव जी का धनुष तोड़ा ऐसे भगवान श्री राम मेरी भुजाओं की रक्षा करें।
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय:॥7॥
अर्थ:
सीता पति श्री राम मेरे हाथों की रक्षा करें, जमदग्नि ऋषि के पुत्र – परशुराम को जीतने वाले श्री राम मेरे हृदय की रक्षा करें। खर नामक राक्षस का वध करने वाले प्रभु राम मेरे शरीर के मध्य भाग की रक्षा करें और जाम्बवन्त को आश्रय देने वाले भगवान श्री राम मेरी नाभि की रक्षा करें।
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्॥8॥
अर्थ:
सुग्रीव के स्वामी मेरे श्री राम मेरी कमर की रक्षा करें। हनुमान के प्रभु तथा राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुकुल में श्रेष्ठ भगवान श्री राम मेरी हड्डियों की रक्षा करें।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः॥9॥
अर्थ:
सागर पर सेतु बांधने वाले श्री राम मेरे दोनों घुटनों की रक्षा करें। दशानन – रावण का वध करने वाले भगवान श्री राम मेरे दोनों जंघाओं की रक्षा करें। विभीषण को ऐश्वर्य और लंका का राज्य प्रदान करने वाले श्री राम मेरे संपूर्ण शरीर की रक्षा करें।
॥ फल श्रुति॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥10॥
अर्थ:
शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ श्री राम के बल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता है।
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि:॥11॥
अर्थ:
जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्म वेश में घूमते रहते हैं, वे श्री राम नाम से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥12॥
अर्थ:
श्री राम, श्री रामभद्र तथा श्री रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला श्री राम का भक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।
य: कण्ठे धारयेत् तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय:॥13॥
अर्थ:
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र श्री राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ यानी याद कर लेता है, उसे संपूर्ण सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्॥14॥
अर्थ:
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस श्री राम रक्षा कवच का स्मरण करता है,