सुंदरकांड की 11 चौपाई, किसी भी काम को करने से पहले बोलें सुंदर कांड की ये चौपाई

सुंदरकांड की 11 चौपाई: हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ रामायण का सुंदरकांड, एक ऐसा अध्याय है जो भक्ति, साहस और मुक्ति का प्रतीक है। यह अध्याय भगवान हनुमान के अद्भुत कारनामों का वर्णन करता है, जब वे लंका में सीता माता की खोज के लिए निकलते हैं। सुंदरकांड का पाठ न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों को समझने का एक मार्ग भी है।

Also Read: सुंदरकांड के 60 दोहे अर्थ सहित

इस लेख में, हम सुंदरकांड के सार, इसके आध्यात्मिक लाभों और व्यक्ति के जीवन में इसके गहन प्रभावों पर प्रकाश डालेंगे। हम समझेंगे कि कैसे यह अध्याय हमें भक्ति, साहस, त्याग और ईश्वर भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

सुंदरकांड की 11 चौपाई | Sunderkand Lyrics PDF

।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।

।। श्रीजानकीवल्लभो विजयते ।।

।। श्रीरामचरितमानस पञ्चम सोपान श्री सुन्दरकाण्ड ।।

।। चौपाई ।।

जामवंत के बचन सुहाए । सुनि हनुमंत हृदय अति भाए ।।

तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई । सहि दुख कंद मूल फल खाई ।।

जब लगि आवौं सीतहि देखी । होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी ।।

यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ।।

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर । कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर ।।

बार बार रघुबीर सँभारी । तरकेउ पवनतनय बल भारी ।।

जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता । चलेउ सो गा पाताल तुरंता ।।

जिमि अमोघ रघुपति कर बाना । एही भाँति चलेउ हनुमाना ।।

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी । तैं मैनाक होहि श्रमहारी ।।

दोहा: हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम ।

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।

।। चौपाई ।।

जात पवनसुत देवन्ह देखा । जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा ।।

सुरसा नाम अहिन्ह कै माता । पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता ।।

आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा । सुनत बचन कह पवनकुमारा ।।

राम काजु करि फिरि मैं आवौं । सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं ।।

तब तव बदन पैठिहउँ आई । सत्य कहउँ मोहि जान दे माई ।।

कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना । ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना ।।

जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा । कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ।।

सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ । तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ ।।

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा । तासु दून कपि रूप देखावा ।।

सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा । अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा ।।

बदन पइठि पुनि बाहेर आवा । मागा बिदा ताहि सिरु नावा ।।

मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा । बुधि बल मरमु तोर मै पावा ।।

दोहा: राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान ।

आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान ।।

।। चौपाई ।।

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई । करि माया नभु के खग गहई ।।

जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं । जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं ।।

गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई । एहि बिधि सदा गगनचर खाई ।।

सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा । तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा ।।

ताहि मारि मारुतसुत बीरा । बारिधि पार गयउ मतिधीरा ।।

तहाँ जाइ देखी बन सोभा । गुंजत चंचरीक मधु लोभा ।।

नाना तरु फल फूल सुहाए । खग मृग बृंद देखि मन भाए ।।

सैल बिसाल देखि एक आगें । ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें ।।

उमा न कछु कपि कै अधिकाई । प्रभु प्रताप जो कालहि खाई ।।

गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी । कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी ।।

अति उतंग जलनिधि चहु पासा । कनक कोट कर परम प्रकासा ।।

।। छंद ।।

कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना ।।

चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना ।।

गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै ।।

बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै ।।

बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं ।।

नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं ।।

कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं ।।

नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं ।।

करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं ।।

कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं ।।

एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही ।।

रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही ।।

दोहा: पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार ।

अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार ।।

।। चौपाई ।।

मसक समान रूप कपि धरी । लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ।।

नाम लंकिनी एक निसिचरी । सो कह चलेसि मोहि निंदरी ।।

जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा । मोर अहार जहाँ लगि चोरा ।।

मुठिका एक महा कपि हनी । रुधिर बमत धरनीं ढनमनी ।।

पुनि संभारि उठि सो लंका । जोरि पानि कर बिनय संसका ।।

जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा । चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा ।।

बिकल होसि तैं कपि कें मारे । तब जानेसु निसिचर संघारे ।।

तात मोर अति पुन्य बहूता । देखेउँ नयन राम कर दूता ।।

दोहा – तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग ।

तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ।।4 ।।

।। चौपाई ।।

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ।।

गरल सुधा रिपु करहिं मिताई । गोपद सिंधु अनल सितलाई ।।

गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही । राम कृपा करि चितवा जाही ।।

अति लघु रूप धरेउ हनुमाना । पैठा नगर सुमिरि भगवाना ।।

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा । देखे जहँ तहँ अगनित जोधा ।।

गयउ दसानन मंदिर माहीं । अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं ।।

सयन किए देखा कपि तेही । मंदिर महुँ न दीखि बैदेही ।।

भवन एक पुनि दीख सुहावा । हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा ।।

दोहा – रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ ।

नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ ।।

।। चौपाई ।।

लंका निसिचर निकर निवासा । इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा ।।

मन महुँ तरक करै कपि लागा । तेहीं समय बिभीषनु जागा ।।

राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा । हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा ।।

एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी । साधु ते होइ न कारज हानी ।।

बिप्र रुप धरि बचन सुनाए । सुनत बिभीषण उठि तहँ आए ।।

करि प्रनाम पूँछी कुसलाई । बिप्र कहहु निज कथा बुझाई ।।

की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई । मोरें हृदय प्रीति अति होई ।।

की तुम्ह रामु दीन अनुरागी । आयहु मोहि करन बड़भागी ।।

दोहा – तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम ।

सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ।।

।। चौपाई ।।

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी । जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी ।।

तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा । करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा ।।

तामस तनु कछु साधन नाहीं । प्रीति न पद सरोज मन माहीं ।।

अब मोहि भा भरोस हनुमंता । बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता ।।

जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा । तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा ।।

सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती । करहिं सदा सेवक पर प्रीती ।।

कहहु कवन मैं परम कुलीना । कपि चंचल सबहीं बिधि हीना ।।

प्रात लेइ जो नाम हमारा । तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा ।।

दोहा: अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर ।

कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ।।

।। चौपाई ।।

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी । फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी ।।

एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा । पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा ।।

पुनि सब कथा बिभीषन कही । जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही ।।

सुंदरकांड पाठ के लाभ | Sunderkand Path Ke Labh

  • सुंदरकांड का पाठ सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माना जाता है।
  • किसी भी प्रकार की परेशानी या संकट से मुक्ति दिलाता है।
  • भूत-प्रेत, यमराज, ग्रह-नक्षत्र आदि से भय दूर करता है।
  • व्यक्ति के अंदर सकारात्मक और विचारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  • भय दूर करके आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को प्रबल बनाता है।
  • गृहकलेश को दूर करके परिवार में खुशियाँ बढ़ाता है।
  • नियमित पाठ से कर्ज और रोग से छुटकारा मिलता है।
  • हनुमानजी की भक्ति और सुंदरकांड का पाठ जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाता है।

सुंदरकांड की 11 चौपाई PDF डाउनलोड 

आप सुंदरकांड की 11 चौपाई की PDF डाउनलोड करने के लिए, आपको एक विशिष्ट वेबसाइट या प्लेटफॉर्म की तलाश करनी होगी जो इस तरह की सामग्री प्रदान करती है। कई वेबसाइटें हैं जो धार्मिक ग्रंथों और उनके अंशों को PDF प्रारूप में मुफ्त में उपलब्ध कराती हैं। आप Google पर “सुंदरकांड चौपाई PDF डाउनलोड” या “सुंदरकांड 11 चौपाई PDF” जैसे कीवर्ड सर्च करके भी अपनी खोज शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा, कई हिंदी वेबसाइटें और ब्लॉग हैं जो सुंदरकांड के अंशों को PDF प्रारूप में साझा करते हैं। ध्यान रखें कि डाउनलोड करने से पहले वेबसाइट की विश्वसनीयता और PDF की गुणवत्ता की जांच करना महत्वपूर्ण है।

Related New Post

Leave a Comment