गुप्त नवरात्रि मंत्र: गुप्त नवरात्रि, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मां दुर्गा की आराधना का समय है। गुप्त नवरात्रि, जो 6 जुलाई 2024, शनिवार को शुरू होकर 15 जुलाई 2024 को समाप्त हो रही है, विशेष रूप से शक्तिशाली मानी जाती है। इन नौ दिनों में, मां दुर्गा की दस महाविद्याओं का पूजन किया जाता है, जो भक्तों को असीम शक्ति और आशीर्वाद प्रदान करती हैं। माना जाता है कि Gupt Navratri के दौरान कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से खुशहाली और समृद्धि प्राप्त होती है। आइए जानते हैं इन Gupt Navratri Mantra के बारे में और कैसे इनका जाप करके आप मां दुर्गा को प्रसन्न कर सकते हैं।
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गुप्त नवरात्रि मंत्र | Gupt Navratri Mantra
गुप्त नवरात्रि के दौरान, मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं का पूजन किया जाता है। प्रत्येक महाविद्या का अपना विशिष्ट मंत्र है, जिसका जाप करने से विशेष फल प्राप्त होता है। यहाँ कुछ प्रमुख महाविद्याओं के मंत्र हैं जिनका जाप आप कर सकते हैं:
- कालिका: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः”
- तारा: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं तारा देव्यै नमः”
- त्रिपुर सुंदरी: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं त्रिपुर सुन्दरी देव्यै नमः”
- भुवनेश्वरी: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः”
- छिन्नमस्ता: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं छिन्नमस्ता देव्यै नमः”
- धूमावती: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं धूमावती देव्यै नमः”
- बगलामुखी: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं बगलामुखी देव्यै नमः”
- मातंगी: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं मातंगी देव्यै नमः”
- कमला: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कमला देव्यै नमः”
- श्रीविद्या: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं
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गुप्त नवरात्रि साधना मंत्र | Gupt Navratri Sadhana Mantra
Gupt Navratri, एक अदृश्य शक्ति का आह्वान है, एक रहस्यमय यात्रा जो Maa Durga की दस महाविद्याओं के साथ जुड़ी है। इस दौरान, प्रत्येक महाविद्या की विशिष्ट शक्तियों को आकर्षित करने के लिए, विशिष्ट मंत्रों का जाप किया जाता है। ये मंत्र, एक गुप्त भाषा में लिखे गए, अंतर्निहित शक्ति और ज्ञान को मुक्त करते हैं। हर मंत्र, एक आध्यात्मिक कुंजी है, जो महाविद्याओं के साथ संवाद स्थापित करती है, और साधक को उनकी अलौकिक शक्तियों से जोड़ती है। गुप्त नवरात्रि की साधना, एक गहन अनुभव है, जो साधक को अपने आंतरिक शक्ति और ज्ञान के साथ जोड़ता है।
माँ दुर्गा को बुलाने का मंत्र | Maa Durga Ko Bulane Ka Mantra
दुर्गा सप्तशती का मंत्र:
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥
दुर्गा देवी को नमन:
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
चंद्रघंटा देवी का मंत्र:
पिण्डज प्रवरा चण्डकोपास्त्रुता। प्रसीदम तनुते महिं चंद्रघण्टातिरुता॥
सौभाग्य और आरोग्य के लिए:
देहि सौभाग्य आरोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥
भीतियों को हरने वाला मंत्र:
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
सर्व बाधा से मुक्ति का मंत्र:
सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्यये सुतान्विताः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥
सर्व स्वरूप और सर्व शक्ति का मंत्र:
सर्व स्वरूपे सर्वेषे सर्व शक्तो समन्विते। भयेभ्यये स्त्रैहि नौ देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते॥
रोग और कष्टों से मुक्ति का मंत्र:
रोगं शेषं पहांसि तुकामां सकलान भिष्ठान्। त्वमाश्रितानां न विपन्नराणां त्वमाश्रिता ह्यश्रितां प्रयन्तीहि॥
सर्व मंगल मंगल्ये का मंत्र:
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥
गुप्त नवरात्रि में साधना सिद्ध कुंजिका मंत्र
॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥