गुरु के दोहे अर्थ सहित | कबीर जी के गुरु पर दोहे

गुरु के दोहे अर्थ सहित: “गुरु” शब्द ज्ञान, मार्गदर्शन और आत्मिक उन्नति का प्रतीक है। गुरु के दोहे, ज्ञान के छोटे-छोटे मोती हैं, जो सदियों से मानवता को प्रबुद्ध करते आ रहे हैं। इन दोहों में जीवन के सार, आध्यात्मिक विकास, और सच्चे ज्ञान की खोज का मार्गदर्शन छिपा है। आइए, हम गुरु के Guru Ke Dohe Arth Sahit को एक साथ समझें, उनके अर्थ को उजागर करें, और अपने जीवन में उनके ज्ञान को आत्मसात करें।

गुरु के दोहे अर्थ सहित | कबीर जी के गुरु पर दोहे

कबीर दास जी के दोहे, जीवन के सत्य को सरल और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करते हैं। इन दोहों में गुरु-शिष्य के संबंध, भक्ति, मोक्ष, और जीवन के मूल्यों का मार्मिक चित्रण है। यहाँ कबीर दास जी के 10 दोहे अर्थ सहित प्रस्तुत किए जा रहे हैं:

जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु है मैं नाहिं।

प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांही।।

अर्थ: अहंकार का अंधकार मेरे अंदर छाया हुआ था, गुरु का प्रकाश मेरे जीवन में तब आया जब मैं अंधेरे में डूबा हुआ था। गुरु के प्रेम की रसधारा ने मेरे अहंकार को पिघला दिया, जैसे सूरज की किरणें बर्फ को पिघला देती हैं। प्रेम की गली इतनी संकरी है कि उसमें अहंकार और गुरु साथ-साथ नहीं रह सकते। गुरु के आगमन के साथ ही अहंकार का अस्तित्व समाप्त हो गया, जैसे चाँद की रोशनी में तारों का प्रकाश मंद पड़ जाता है।

गुरु गोविन्द दोऊ एक हैं, दुजा सब आकार।

आपा मैटैं हरि भजैं, तब पावैं दीदार।।

अर्थ: गुरु और गोविंद, दोनो एक ही सत्ता के विभिन्न रूप हैं, केवल नाम में अंतर है। गुरु का बाहरी रूप चाहे जैसा भी हो, अंदर से वह भी वही है जो गोविंद है। सच्चे गुरु का दर्शन प्राप्त करने के लिए, मन से अहंकार की भावना का त्याग करना आवश्यक है। सरलता और सहजता के साथ आत्म ध्यान करने से ही सद्गुरु का दर्शन प्राप्त हो सकता है, जिससे प्राणी का कल्याण होगा।

गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।

गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।

अर्थ: कबीर दास जी का यह कथन, जीवन के सत्य को उजागर करता है: बिना गुरु के ज्ञान का मिलना असंभव है। मनुष्य अज्ञान के अंधकार में भटकता रहता है, मायारूपी सांसारिक बंधनों में जकड़ा रहता है, जब तक कि गुरु की कृपा नहीं प्राप्त होती। गुरु ही मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं, सत्य और असत्य, उचित और अनुचित का ज्ञान कराते हैं।

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गुरु शरणगति छाडि के, करै भरोसा और।

सुख संपती को कह चली, नहीं नरक में ठौर।।

अर्थ: संतों का यह कथन, गुरु भक्ति के महत्व को रेखांकित करता है। जो मनुष्य गुरु के पावन चरणों को त्यागकर अन्य पर भरोसा करता है, उसके सुख-संपत्ति की बात तो दूर, उसे नरक में भी स्थान नहीं मिलता।

जैसी प्रीती कुटुम्ब की, तैसी गुरु सों होय।

कहैं कबीर ता दास का, पला न पकड़े कोय।।

अर्थ: कबीर दास जी का यह कथन, गुरु भक्ति के महत्व को स्पष्ट करता है। मानव को अपने गुरु से उसी प्रेम और निष्ठा से प्रेम करना चाहिए, जैसा वह अपने परिवार से करता है। ऐसा करने से जीवन की समस्त बाधाएँ मिट जाएँगी और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।

कबीर यह तन जात है, सकै तो ठौर लगाव।

कै सेवा कर साधु की, कै गुरु के गुन गाव।।

अर्थ: संतों का यह कथन, मनुष्य जीवन की अनमोलता और उसके उद्देश्य को उजागर करता है। मनुष्य योनि, समस्त योनियों में श्रेष्ठ है, परंतु यह समय बीतता जा रहा है, कब इसका अंत आएगा, कुछ नहीं पता। बार-बार मानव जीवन नहीं मिलता, इसलिए इसे व्यर्थ न गँवाएँ। समय रहते हुए साधना करके, सद्गुरु के ज्ञान का गुण गाकर, जीवन का कल्याण करें।

गुरु सों ज्ञान जु लीजिए, सीस दीजिए दान।

बहुतक भोंदु बहि गये, राखि जीव अभिमान।।

अर्थ: संतों का यह कथन, गुरु की शरण में जाने और पूर्ण समर्पण के महत्व को दर्शाता है। सच्चे गुरु की शरण में जाकर ज्ञान-दीक्षा लेना और अपना तन-मन पूर्ण श्रद्धा से समर्पित करना ही सच्चा दक्षिणा है। जो अभिमानी, गुरु-ज्ञान की तुलना में अपनी सेवा-समर्पण को तुच्छ मानते हैं, वे संसार की माया में बह जाते हैं और उनका उद्धार नहीं हो पाता।

गुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान।

तीन लोक  की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान।।

अर्थ: यह कथन, गुरु-शिष्य के पवित्र संबंध की गहराई को दर्शाता है। संपूर्ण संसार में गुरु से बड़ा दानी और शिष्य से बड़ा याचक कोई नहीं है। गुरु, ज्ञान रूपी अमृतमयी अनमोल संपत्ति अपने शिष्य को प्रदान करके कृतार्थ होते हैं, और शिष्य केवल याचना करके ही गुरु द्वारा प्रदान की जाने वाली अनमोल ज्ञान-सुधा प्राप्त कर लेता है।

तिमिर गया रवि देखते, कुमति गयी गुरु ज्ञान।

सुमति गयी अति लोभते, भक्ति गयी अभिमान।।

अर्थ: यह कथन, सद्गुरु के ज्ञान के महत्व और लोभ-अभिमान के दुष्परिणामों को स्पष्ट करता है। जैसे सूर्योदय से अंधकार नष्ट होता है, वैसे ही सद्गुरु के ज्ञान से कुबुद्धि नष्ट होती है। लोभ बुद्धि का नाश करता है और अभिमान भक्ति का नाश करता है। अतः लोभ आदि से बचकर रहना ही श्रेयस्कर है।

गुरु गोविंद दोऊ खडे, काके लागुं पांय।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।

अर्थ: यह प्रश्न गुरु-भक्ति के महत्व को दर्शाता है। गुरु और गोविंद दोनों ही पूजनीय हैं, परंतु गुरु की कृपा से ही गोविंद का दर्शन प्राप्त होता है। इसलिए, गुरु के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है।

ज्ञान बिना मोती, गुरु बिना फेर।
जैसे बिना जंगल, न होत फल भर।।

अर्थ: इस दोहे में कहा गया है कि ज्ञान बिना मोती की तरह बेकार है, और गुरु बिना उस मोती को पिरोने वाला नहीं है। जैसे जंगल के बिना फल नहीं होते, वैसे ही गुरु के बिना ज्ञान का फल नहीं मिलता।

गुरुदेव दया निधान, ज्ञान अमृत प्रदान।
जो गुरु भक्ति करे, सोई पावे निधान।।

अर्थ: यह दोहा गुरु की दया और कृपा को दर्शाता है। गुरु ज्ञान का अमृत प्रदान करते हैं और जो गुरु भक्ति करता है, उसे ज्ञान का खजाना मिलता है।

गुरु ही ब्रह्म, गुरु ही विष्णु, गुरु ही शिव सबै।
गुरु ही माता, गुरु ही पिता, गुरु ही सबै देव।।

अर्थ: यह दोहा गुरु को सर्वोच्च स्थान देता है। गुरु ही ब्रह्म, विष्णु, शिव, माता, पिता, और सभी देवता हैं। गुरु ही सच्चा मार्गदर्शक हैं।

गुरु बिना ज्ञान न होत, गुरु बिना मोक्ष न होत।
गुरु बिना जीवन व्यर्थ, गुरु बिना संसार न होत।।

अर्थ: यह दोहा गुरु के महत्व को स्पष्ट करता है। गुरु के बिना ज्ञान, मोक्ष, जीवन, और संसार सब व्यर्थ हैं। गुरु ही जीवन का आधार हैं।

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