गुरु पूर्णिमा की कथा: आज, आषाढ़ मास की पूर्णिमा, हम गुरु पूर्णिमा मना रहे हैं, एक ऐसा पर्व जो ज्ञान के दीपक को जलाता है और आभार के भाव को प्रज्वलित करता है। यह पर्व महर्षि वेद व्यास, महाभारत के रचयिता और वेदों के संकलनकर्ता को समर्पित है, जिनका जन्म इसी दिन हुआ था। इस दिन, शिष्य अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन को समृद्ध करते हैं। आइए, इस पावन अवसर पर Guru Purnima के महत्व को समझें और अपने गुरुओं को नमन करें।
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क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा
आज से करीब 3000 वर्ष पूर्व, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को, महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। यह वह दिन था जब ज्ञान का दीपक प्रज्वलित हुआ, जिसने महाभारत जैसे महाकाव्य को जन्म दिया और वेदों को संकलित किया। इसी दिन को Guru Purnima के रूप में मनाया जाता है, जो महर्षि वेदव्यास को समर्पित है और गुरु-शिष्य के पवित्र बंधन का प्रतीक है। हिंदी पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को Guru Purnima का त्योहार मनाया जाता है, जो ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त करने का अवसर है।
- गुरु पूर्णिमा ज्ञान के प्रकाश को मनाती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि ज्ञान केवल किताबों से नहीं, बल्कि गुरुओं के मार्गदर्शन से प्राप्त होता है।
- यह पर्व शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है। गुरु हमारे जीवन में मार्गदर्शक होते हैं, जो हमें सही रास्ते पर चलने में मदद करते हैं।
- गुरु पूर्णिमा हमें अपने गुरुओं के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर प्रदान करती है। उनके द्वारा दिए गए ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए हम उन्हें धन्यवाद देते हैं।
- गुरु पूर्णिमा हमें अपने भीतर के गुरु को पहचानने का अवसर भी देती है। यह दिन हमें अपने आत्म-ज्ञान की खोज के लिए प्रेरित करता है।
- गुरु पूर्णिमा भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ता है।
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गुरु पूर्णिमा की कथा | Guru Purnima Ki Katha
महर्षि वेदव्यास, ज्ञान के सागर, एक ऐसे महान आत्मा थे जिनका जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था। उनके बाल्यकाल में, उनके मन में प्रभु दर्शन की तीव्र इच्छा जागी। उन्होंने अपनी माता सत्यवती से यह इच्छा प्रकट की, लेकिन माता ने उन्हें समझाया कि अभी समय नहीं आया है। वेदव्यास के हठ पर, माता ने उन्हें वन जाने की आज्ञा दी, साथ ही कहा कि जब घर का स्मरण आए तो वापस लौट आना।
वन में जाकर, वेदव्यास ने कठिन तपस्या की। उनकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि उनके शरीर में ज्ञान का प्रकाश समा गया। उन्होंने संस्कृत भाषा में महारत हासिल की और चारों वेदों का विस्तार किया। वेदव्यास ने महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की रचना की, जो ज्ञान के अथाह सागर हैं।
वेदव्यास की तपस्या और ज्ञान ने उन्हें “गुरु” के रूप में स्थापित किया। उनका जन्मदिवस, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, Guru Purnima के रूप में मनाया जाता है। यह दिन गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने और उनके ज्ञान से जीवन को समृद्ध करने का अवसर है। वेदव्यास की तपस्या और ज्ञान ने सदियों से गुरु पूजने की परंपरा को स्थापित किया है, जो आज भी जीवंत है।
गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं की उपासना कैसे करें
- गुरु का सम्मान, परिवार का सम्मान: Guru Purnima केवल गुरुओं के लिए ही नहीं, बल्कि परिवार में बड़ों – माता-पिता, भाई-बहन, आदि – के प्रति सम्मान व्यक्त करने का भी अवसर है। वे भी हमारे जीवन में मार्गदर्शन करते हैं और ज्ञान प्रदान करते हैं।
- ज्ञान का प्रकाश, गुरु की कृपा: गुरु की कृपा से ही विद्यार्थी को विद्या प्राप्त होती है। गुरु का आशीर्वाद और मार्गदर्शन जीवन को सार्थक बनाता है।
- मंत्रों का जाप, गुरु का आशीर्वाद: Guru Purnima के दिन गुरु से मंत्र प्राप्त करना विशेष फलदायी माना जाता है। गुरु का आशीर्वाद जीवन में सफलता और समृद्धि लाता है।
- सेवा और सम्मान: गुरुजनों की सेवा करना, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना, और उन्हें उपहार देना गुरु पूर्णिमा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह दिन गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर है।
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