श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र (हिन्दी अनुवाद सहित) – अर्थ के साथ

राधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र अर्थ सहित: श्रीमती राधा रानी, श्रीकृष्ण के प्रेम की अधिष्ठात्री देवी, की दयालु पार्श्व दृष्टि के लिए एक विनम्र प्रार्थना, राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र, भगवान शिव द्वारा रचित और देवी पार्वती से बोली जाने वाली एक शक्तिशाली प्रार्थना है। Radha Kripa Kataksha Stotram श्री राधा रानी के श्रृंगार, रूप और करूणा का वर्णन करता है, बार-बार पूछता है कि कब राधा रानी अपने भक्त पर कृपा करेंगी?

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र में 13 अंतर, प्रत्येक 4 पंक्तियों का, और 6 श्लोक, प्रत्येक 2 पंक्तियों का, राधा रानी की स्तुति में समर्पित हैं। राधा चालीसा में भी कहा गया है कि श्रीकृष्ण का प्रेम प्राप्त करने के लिए राधा का नाम लेना अनिवार्य है। Radha Kripa Kataksha Stotram स्तोत्र के नियमित पाठ से श्री राधा-कृष्ण के चरण कमलों की प्राप्ति निश्चित है। आप सभी राधा कृपा कटाक्ष का श्रवण नित्य करें, और श्री राधा रानी की दया का अनुभव करें।

राधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र अर्थ सहित | Radha Kripa Kataksha Stotram

श्लोक १:

मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी,
प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकुंजभूविलासिनी।
व्रजेन्द्रभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

अर्थ: हे मुनीश्वरों द्वारा वंदित, तीनों लोकों के शोक को हरने वाली, प्रसन्न मुख कमल वाली, निकुंजों में विहार करने वाली, वृषभानु नंदिनी, ब्रजेंद्र नंदन श्रीकृष्ण की सखी, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक २:

अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते,
प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

अर्थ: हे अशोक वृक्ष की लताओं से बने मंडप में विराजमान, प्रवाल और ज्वाला के समान कोमल चरणों वाली, वर और अभय प्रदान करने वाले सुंदर हाथों वाली, अपार सम्पदा की स्वामिनी, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक ३:

अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां,
सुविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

अर्थ: हे कामदेव के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंगों में अपनी भंगुर भौंहों से कटाक्ष रूपी बाण चलाने वाली, श्रीकृष्ण को अपने वश में रखने वाली, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक ४:

तड़ित्सुवर्ण चम्पक प्रदीप्तगौरविग्रहे,
मुखप्रभा परास्त-कोटि शारदेन्दुमण्ङले।
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशाव लोचने,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

अर्थ: हे बिजली, स्वर्ण और चंपा के समान कांति वाली, दीप्तिमान गौर शरीर वाली, मुख की प्रभा से करोड़ों चांद को मात देने वाली, चंचल चकोर के समान सुंदर नेत्रों वाली, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक ५:

मदोन्मदाति यौवने प्रमोद मानमण्डिते,
प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।
अनन्य धन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

अर्थ: हे यौवन के मद से परिपूर्ण, आनंद को अपना आभूषण मानने वाली, प्रियतम के प्रेम में रंगी हुई, कला और विलास में निपुण, निकुंज के राजा श्रीकृष्ण की प्रेम क्रीड़ा में प्रवीण, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक ६:

अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते,
प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमंदहास्यचूर्ण पूर्ण सौख्यसागरे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

अर्थ: हे समस्त हाव-भावों से युक्त, धैर्य रूपी हीरों के हारों से सुशोभित, सुंदर स्वर्ण कलशों के समान उन्नत वक्ष स्थल वाली, अत्यंत मनोहर मंद मुस्कान रूपी आनंद सागर वाली, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

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श्लोक ७:

मृणाल वालवल्लरी तरंग रंग दोर्लते ,
लताग्रलास्यलोलनील लोचनावलोकने।
ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

अर्थ: जल की लहरों पर इठलाते हुए सुकोमल कमल नाल के समान भुजाओं वाली, लताओं के अग्रभाग जैसे चंचल नील नेत्रों वाली, मोहन श्रीकृष्ण को भी मोहित करने वाली, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक ८:

सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेख कम्बुकण्ठगे,
त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्ति दीधिते।
सलोल नीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

अर्थ: हे स्वर्ण मालाओं से सुशोभित, तीन रेखाओं वाले सुंदर शंख के समान कंठ वाली, तीन गुणों और तीन रत्नों से युक्त मंगलसूत्र धारण करने वाली, घुंघराले नीले केशों में सुंदर पुष्प गुच्छों से सुसज्जित, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक ९:

नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण,
प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

अर्थ: हे नितंबों पर सुशोभित पुष्प मेखला धारण करने वाली, रत्न जटित सुंदर कंकण पहनने वाली, हाथी की सूंड को भी लज्जित करने वाली सुंदर जंघाओं वाली, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक १०:

अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्,
समाजराजहंसवंश निक्वणाति गौरवे,
विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारू चक्रमे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

अर्थ: हे अनेक मंत्रों के समान मधुर नूपुर की ध्वनि से वातावरण को गुंजायमान करने वाली, राजहंसों की सुंदर चाल से चलने वाली, स्वर्ण लता के समान सुंदर चरण कमलों वाली, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक ११:

अनन्तकोटिविष्णुलोक नम्र पदम जार्चिते,
हिमद्रिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपार सिद्धिऋद्धि दिग्ध -सत्पदांगुलीनखे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

अर्थ: हे अनंत कोटि विष्णु लोकों द्वारा पूजित चरण कमलों वाली, पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती को वरदान देने वाली, अपार सिद्धि और ऋद्धि प्रदान करने वाले चरणों वाली, आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

श्लोक १२:

मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी,
त्रिवेदभारतीश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी,
ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥

अर्थ: हे समस्त यज्ञों की स्वामिनी, सभी क्रियाओं की अध्यक्षा, स्वधा देवी की अधिपति, देवताओं की देवी, तीनों वेदों की ज्ञाता, प्रमाणों की शासक, लक्ष्मी की स्वामिनी, क्षमा की देवी, आनंद वन की अधिपति, ब्रज की स्वामिनी, श्री राधिके! आपको मेरा बारम्बार नमन है!

श्लोक १३:

इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी,
करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकर्मनाशनं,
लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डल प्रवेशनम्॥

अर्थ: हे वृषभानु नंदिनी! इस अद्भुत स्तवन को सुनकर, मुझे सदा अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करें। आपकी कृपा से ही मेरे समस्त पापों का नाश होगा और मुझे श्रीकृष्ण के दिव्य धाम में स्थान प्राप्त होगा।

एक बार तो राधा बनकर देखो

श्लोक १४:

राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।
एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥

अर्थ: जो साधक पूर्णिमा, शुक्ल पक्ष की अष्टमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी को पवित्र मन से इस स्तवन का पाठ करेगा…

श्लोक १५:

यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।
राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥

अर्थ: उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। श्री राधा की कृपा दृष्टि से उसे प्रेम लक्षणा भक्ति प्राप्त होगी।

श्लोक १६:

ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।
राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥

अर्थ: जो साधक राधा कुंड के जल में खड़े होकर अपनीजांघों,नाभि,ह्रदययाकंठतक इस स्तोत्र का १०० बार पाठ करेगा…

श्लोक १७:

तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।
ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥

अर्थ: उसे सभी क्षेत्रों में सिद्धि प्राप्त होगी, उसकी वाणी में सामर्थ्य आएगा, और वह श्री राधिका के दिव्य दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करेगा।

यशोमती मैया से बोले नंदलाला राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला

श्लोक १८:

तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥

अर्थ: श्री राधिका उस पर प्रसन्न होकर उसे वह महान वरदान प्रदान करेंगी जिससे वह अपने नेत्रों से उनके प्रियतम श्यामसुंदर के दर्शन कर सके।

श्लोक १९:

नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।
अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥

अर्थ: वृंदावन के अधिपति श्रीकृष्ण उस भक्त को अपनी नित्य लीलाओं में प्रवेश देते हैं। वैष्णव जन इससे बढ़कर किसी चीज की कामना नहीं करते।

॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥

अर्थ: इस प्रकार श्री उर्ध्वाम्नाय तंत्र का श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र पूरा हुआ।

राधा कृपा कटाक्ष का अर्थ

  • राधा: कृष्ण की प्रेमिका, वैष्णव धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी।
  • कृपा: दया, अनुग्रह, करुणा।
  • कटाक्ष: दृष्टि, नज़र, विशेष रूप से किसी को देखने का तरीका जो आकर्षण या अनुग्रह व्यक्त करता है।

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